बुधवार, 30 दिसंबर 2020
नया साल..
रविवार, 20 दिसंबर 2020
रूठना और मनाना
रविवार, 13 दिसंबर 2020
मेरे सच्चे अल्फ़ाज़
गुरुवार, 3 दिसंबर 2020
बेटियां..( Pride of nation)
शुक्रवार, 27 नवंबर 2020
सब मोह माया है।
रविवार, 22 नवंबर 2020
क्या लिखूं .. सोच रहा हु
शनिवार, 14 नवंबर 2020
कुछ न होकर भी खुश रहने का अंदाज़
गुरुवार, 12 नवंबर 2020
उम्मीदो की दीवाली
शनिवार, 7 नवंबर 2020
काश तेरे जैसी ही दुनिया होती..
सोमवार, 2 नवंबर 2020
ज़िन्दगी की दोहरी चाल..
बुधवार, 28 अक्टूबर 2020
विश्वास की उड़ान
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020
ज़िन्दगी सुन जरा..
रविवार, 18 अक्टूबर 2020
कलियुग और इंसान
बुधवार, 14 अक्टूबर 2020
कलाम तुझे सलाम
सोमवार, 12 अक्टूबर 2020
आत्मनिर्भर फेरीवाले
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020
रिक्सेवाला
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020
मेरे अल्फ़ाज़ तेरे नाम से...
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020
मेरी आवाज (हर नारी के दिल की बात)
मैं लड़की हूँ ओस की बूंदों सी
गंगा की तरह पवित्र मेरा मन है
अपने सपनो को मार कर जीती हूँ
हर वक़्त आसूं के घुट पीती हूँ
यह वही समाज है जहाँ मैं देवी हूँ
किसी की माँ किसी की बेटी हूँ
किसी की बहन किसी की बहू हूँ
किसी की प्रेमिका किसी की पत्नी हूँ
इतने सारे रिश्तों को संजोती हूँ
अपनो की खुशी के लिए जीती हूँ
दुख साझा नही करती अकेले मे रो लेती हूँ
सब कुछ तो करती हूँ समाज के लिये
फिर भी नज़रे मुझपे ही क्यों उठती है
हर दिन मेरा बलात्कार होता है
मेरे सपनों का चीर फाड़ होता है
मेरे जिस्म का बलात्कार होता है
मेरे जज्बात का तिरस्कार होता है
बलात्कार के बाद राजनीति होती है
कुछ दिन तक मैं सुर्खियों में होती हूँ
कुछ महीनों तक लोगो के स्टेटस पर
फिर मेरे नाम पर मोमबत्ती जलाई जाती है
फिर इंसाफ की बातें चलाई जाती है
हर वक़्त हर पल हर क्षण मैं ही मरती हूँ
महाभारत से लेकर आज तक
सिर्फ मेरी इज्जत ही तो उतारी गयी है
अक्सर मुझे बचलन बना दिया जाता है
पर आदमी के चाल चलन पर सवाल नही उठता है
मैं वही देवी हूँ जो नवरात्र में सजाई जाती हूँ
कभी दुर्गा कभी काली रूप मे पूजी जाती हूँ
कहते हो मुझे देवी,तो देवी का सम्मान भी करो
मैं तुम्हारे देश की लाज हूँ मुझे बदनाम तो न करो।
रविवार, 27 सितंबर 2020
गम है पर हौसले कहाँ कम है
बुधवार, 23 सितंबर 2020
कठपुतली
नचाता कोई और खुश होता जमाना है
धागों के सहारे नाचती कठपुतली
उंगली पे नचाता अदृश्य कलाकार
उनका अपना न कोई मन है न विचार
न ही कोई जज्बात और न कोई अरमान
बस इशारा मिलते ही खेल दिखाती है
खेल खत्म होते ही बक्से में सिमट जाती है
कठपुतली है साहब जीना सिखाती है
देखने वालों को असली चेहरा दिखाती है
अलग अलग पात्र बन जीवन मे आती है
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है
जीवन का हर एक पात्र कठपुतली है
इस सच्चाई से रूबरू कराती है।
@tri....
सोमवार, 21 सितंबर 2020
दिल से दिल की बात