बुधवार, 23 सितंबर 2020

कठपुतली


कठपुतली का खेल बहुत पुराना है
नचाता कोई और खुश होता जमाना है
धागों के सहारे नाचती कठपुतली
उंगली पे नचाता अदृश्य कलाकार
उनका अपना न कोई मन है न विचार
न ही कोई जज्बात और न कोई अरमान
बस इशारा मिलते ही खेल दिखाती है
खेल खत्म होते ही बक्से में सिमट जाती है
कठपुतली है साहब जीना सिखाती है
देखने वालों को असली चेहरा दिखाती है
अलग अलग पात्र बन जीवन मे आती है
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है
जीवन का हर एक पात्र कठपुतली है
इस सच्चाई से रूबरू कराती है।
@tri....

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