कठपुतली का खेल बहुत पुराना है
नचाता कोई और खुश होता जमाना है
धागों के सहारे नाचती कठपुतली
उंगली पे नचाता अदृश्य कलाकार
उनका अपना न कोई मन है न विचार
न ही कोई जज्बात और न कोई अरमान
बस इशारा मिलते ही खेल दिखाती है
खेल खत्म होते ही बक्से में सिमट जाती है
कठपुतली है साहब जीना सिखाती है
देखने वालों को असली चेहरा दिखाती है
अलग अलग पात्र बन जीवन मे आती है
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है
जीवन का हर एक पात्र कठपुतली है
इस सच्चाई से रूबरू कराती है।
@tri....
नचाता कोई और खुश होता जमाना है
धागों के सहारे नाचती कठपुतली
उंगली पे नचाता अदृश्य कलाकार
उनका अपना न कोई मन है न विचार
न ही कोई जज्बात और न कोई अरमान
बस इशारा मिलते ही खेल दिखाती है
खेल खत्म होते ही बक्से में सिमट जाती है
कठपुतली है साहब जीना सिखाती है
देखने वालों को असली चेहरा दिखाती है
अलग अलग पात्र बन जीवन मे आती है
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है
जीवन का हर एक पात्र कठपुतली है
इस सच्चाई से रूबरू कराती है।
@tri....
Beautiful and unique poem❤️😘❤️❤️😘😍🌹
जवाब देंहटाएंVery true and beautiful🥰😍😘
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