बदनाम कर दिया हमारी मोहब्बत को
खराब किस्मत का इशारा कर के।
रस्ते रस्ते मंजिल मंजिल भटकता रहा
दर्द क्या खूब दिया सहारा बन के।
कोई कसूर न था मेरी चाहत में
न कोई कमी ही थी जज्बातों में
दिल टूटा बस टूटता ही गया
कमियों का बहाना कर के।
न कभी उसे अहसास हुआ
न कभी मुड़ के देखा कही
न कभी समझा मेरे प्यार को
चला गया वो बेसहारा कर के।
दो लफ़्ज़ों में सिमट गयी ज़िन्दगी
हमने उसे टूट का चाहा
और हम चाह कर टूट गये
साथ रहने का इरादा कर के ।
कसूर बस इतना था दिल का
बेइंतिहा प्यार किया उसे अपना समझ के।
पर छोड़ गया अकेला कमबख्त
बस झूठा वादा करके ।
तकलीफ हुई तड़पे भी बहुत
रोना चाहा पर रो न सके
फिर से उठने का इरादा करके।
हम काबिल थे हर जख्म सहने को
पर तुम काबिल न थे हमारी वफ़ा के लिए
इसलिए बहुत अच्छा किया हमसे किनारा कर के।
✍️त्रिभुवन शर्मा