गुरुवार, 10 सितंबर 2020

सपने



कुछ सपने मैंने खरीदे थे 
अपनी नीदों को बेच कर,
न जाने वो कहाँ खो गए
बिस्तर के नीचे देखा
तकिये के अंदर तलाशा
उम्मीदों के गुलक में ढूढा
पूरी अलमारी खंगाल डाली
बहुत ढूढा पर कही नही मिले
नज़र पड़ी खिड़की के बाहर
विश्वास के खंबे पर बैठे
अपने पंखों को सहलाते
मुझे देख मुस्कुरा रहे थे
ऐसा लग रहा था कि 
मानो ऊची उड़ान भरने वाले हो।
@tri....

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