हमाम में नंगे हम सभी लोग है
और इंसानियत की दुहाई दिये जा रहे है।
रक्षक आज भक्षक बन बैठे है
जो भेड़ियों की तरह आँखे दिखा रहे है।
यह दौर भी क्या दौर है यारो
हर चीज़ में लोग मिलावट किये जा रहे है।
खुद को शेर समझने वाले लोग
आज जानवरो की तरह पेश आ रहे है।
गर कोई कहदे 'जानवर हो तुम'
यह सुन गुस्से में झल्ला जा रहे है।
यह दौर भी क्या दौर है यारो
हर चीज़ में लोग मिलावट किये जा रहे है।
झूठ का व्यापार करने वाले लोग
बिना डरे सत्य की बलि चढ़ा रहे है।
समाज के पढ़े लिखे संस्कारी लोग
अंधविश्वास में जिये जा रहे है।
यह दौर भी क्या दौर है यारो
हर चीज़ में लोग मिलावट किये जा रहे है।
रिश्ते कच्चे डोर की तरह है
जो मुश्किलों में टूट कर बिखर जा रहे है।
महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले
बेधड़क बिंदास हवस का चूल्हा जला रहे है।
यह दौर भी क्या दौर है यारो
हर चीज़ में लोग मिलावट किये जा रहे है।
होली को पानी की बर्बादी कहने वाले
रेनडांस में थिरक थिरक कर खुशिया मना रहे है।
दीवाली की आतिशबाजी को प्रदूषण बोलने वाले साल के बारहों महीने सिगरेट का धुवा उड़ा रहे है।
यह दौर भी क्या दौर है यारो
हर चीज़ में लोग मिलावट किये जा रहे है।
✍️त्रिभुवन शर्मा।