कई रिश्ते मिले परिवार बना
सुख-दुख का आधार बना।
बड़ो से ही थी घर की छाया
किसी मे न थी कोई माया।
घर एक और रसोई भी एक था
साथ बैठ कर खाना नेक था।
सब मिल जुल कर रहते थे
इसे ही परिवार की एकता कहते थे।
थी अनोखी वो सारी यादें
दादा दादी - नाना नानी की
कहानी वाली रातें।
जिनमे थी संस्कारों वाली बातें।
पहले जैसा अब सब कहाँ रहा
बदलता रहा हर मनभाव यहाँ।
जाने किसकी नज़र लगी
आपसी कलह की हवा चली।
घरों के झगड़े बढ़ते गए
मकानों के भाव चढ़ते गए।
परिवार अलग-थलग होने लगा
बिल्डर का जेब भरने लगा।
गर ऐसा ही आगे चलता रहा
आपसी मनमुटाव बढ़ता रहा।
तो खुशियाँ दो पल की रह जाएगी
आएगी और चली जाएँगी।
टूटता परिवार टूटता जाएगा
मन पूरी तरह से अशांत हो जाएगा।
फिर वह दिन जल्द ही आएगा
जब खुद को हर कोई अकेला पाएगा।
अकेला रहा तो शिकारी के जाल में फस जाएगा
परिवार साथ रहा तो जाल ले उड़ जाएगा।
कहानी बच्चपन की थी बहुत छोटी
पर सबक एकता की थी बहुत मोठी
अभी संभला नही तो फिर संभल न पायेगा
परिवार गर टूटा तो तू भी टूट जाएगा।
✍️त्रिभुवन शर्मा.
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