घर से कुछ दूर सड़क के किनारे
बाजार की भीड़ में
मिठाई के दुकान के पास
सिक्के गिनते हुए मैंने उसे देखा,
उसकी आँखों मे दीवाली के उत्साह को
मैंने सिक्को की खनक में जीते हुए देखा,
चाहत उसकी भी रंग बिरंगे कपड़ो की
पर अपनी फटे पुराने कपड़ो को
साफ करते हुए मैंने उसे देखा,
मासूम सी आंखों की नमी को
चेहरे की मुस्कुराहट के पीछे
छुपाते हुए मैंने उसे देखा,
बाजार की भीड़ में लड़के को अकेले
खामोश एक कोने में खड़े
खुद के ग़मो को पीते हुए मैंने देखा,
जब मैं उसके नजदीक गया
और पूछा,"बेटा क्या चाहिए तुम्हे?
हल्की सी मुस्कुराहट के साथ
सिर हिलाकर 'ना' करते हुए मैंने उसे देखा,
कमाल की गरीबी
और गजब का स्वाभिमान
उस बच्चे में मैंने देखा,
इतनी छोटी सी उम्र में
उसके अंदर 'ज़मीर' को पलते हुए मैंने देखा,
कुछ न होकर भी खुश रहने का अंदाज़
उस बच्चे की मुस्कुराती आंखों में मैंने देखा।
@tri....
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