मिट्टी के दीये बनाने वाला
आशा के दीये बनाता है,
कई सपने और उम्मीदो को
मिठ्ठी के दीये में सजाता है,
भरी दोपहरिया उम्मीदो संग
फटे पुराने कपड़े में ही
दीये बेचने निकल जाता है,
"दीये ले लो"
"मिट्टी के दीये ले लो"
बड़े प्यार से लोगो को बुलाता है,
ऐसे ही कई उम्मीदे
कभी चौराहे ,कभी बाज़ारो में
कभी चौखट पर दिख जाते है,
जरूरतों को पूरी करने के चक्कर में
खुद की दीवाली भूल जाते है,
तो क्यो न इस बार की दीवाली
कुछ अलग अंदाज़ में मनाई जाए,
जहाँ तक हो सके दीये की रोशनी
उन तक पहुचाई जाए ,
जिनकी मेहनत से
हमारे छोटे छोटे सपने पूरे होते है ,
जिनके आशीर्वाद से
हर घर रोशन होते है,
क्यो न इन नन्हे उम्मीदो को
हौसलो की उड़ान दी जाए,
इस दीवाली इनके ओठो पर
थोड़ी ही सही मुस्कान दी जाए।
@tri....
Beautiful poem 🙏🏻 with great msg👌🙏🏻😊
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