शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

रिक्सेवाला

 

हर किसी के गम में 
अपने गम की झलक पाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला 
अपनी धुन में चला जाता है
तन पे फटा पुराना कपड़ा लपेटे 
छालों से भरे नग्न पाव समेटे
छोटी छोटी उम्मीदे संजोकर 
हर सुबह कमाने निकल जाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला 
अपनी धुन में चला जाता है
धूप में खड़ा होकर 
वह हर मुसाफिर को बुलाता है
    मुसाफिर मिलते है     
                मंजिल की तरफ बढ़ जाता है                 
अपने खून को जला कर 
मुसाफ़िर को मंजिल तक पहुचाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला 
अपनी धुन में चला जाता है
मुसाफ़िर के अपशब्द सुनता है
और मन ही मन मुस्कुराता है 
ज्यादा कमाने की लालच नही
बस दो रोटी की चाहत में 
हर रोज युद्ध पर निकल जाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला 
अपनी धुन में चला जाता है।
@tri....

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