हर किसी के गम में
अपने गम की झलक पाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला
अपनी धुन में चला जाता है
तन पे फटा पुराना कपड़ा लपेटे
छालों से भरे नग्न पाव समेटे
छोटी छोटी उम्मीदे संजोकर
हर सुबह कमाने निकल जाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला
अपनी धुन में चला जाता है
धूप में खड़ा होकर
वह हर मुसाफिर को बुलाता है
मुसाफिर मिलते है
मंजिल की तरफ बढ़ जाता है
अपने खून को जला कर
मुसाफ़िर को मंजिल तक पहुचाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला
अपनी धुन में चला जाता है
मुसाफ़िर के अपशब्द सुनता है
और मन ही मन मुस्कुराता है
ज्यादा कमाने की लालच नही
बस दो रोटी की चाहत में
हर रोज युद्ध पर निकल जाता है
एक बूढ़ा रिक्से वाला
अपनी धुन में चला जाता है।
@tri....
Bahut shandar 👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंvery nice sir superb👌👌👌👌👌
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