ज़िन्दगी अक्सर दोहरी चाल चलती है
नाम भी देती है, बदनाम भी करती है
प्रसंशा भी देती है,निंदा भी करती है
सम्मान भी देती है ,अपमान भी करती है
ज़िन्दगी के इस दोहरी चाल में इंसान बुरा फसता है
ज्यादा पाने की लालच में खुद को खो बैठता है
अपने पैसे और ताकत पर घमंड करता है
उसी घमंड से ' मैं 'का जन्म होता है
'मैं ' से अहंकार की उत्पत्ति होती है
अहंकार आदमी को सत्य से दूर कर देता है
असत्य धीरे धीरे अपनो को दूर कर देता है
रिश्ते काँच के टुकड़ो की भांति बिखर जाते है
अंत मे पैसे और ताकत बस नाम के रह जाते है
जिस्म मिट्टी की मिट्टी में मिल जाती है
कर्म अच्छा हो तो नाम कर जाती है
कर्म बुरे हो तो बदनाम हो जाती है
ज़िन्दगी है यारो जीना सीखा जाती है
कभी गीता कभी कुरान बन जाती है
इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाती है।
फिर भी इंसान ज़िंदगी को समझ नही पाता है
ज़िंदगी के दोहरी चाल में अक्सर फस जाता है।
@tri....
true words✍👍
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