शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

सब मोह माया है।

 

जग है माया खेल है जीवन
कब तक खुद को बचाएगा?
जैसा कर्म करेगा बन्दे
वैसा ही फल पायेगा।
थोड़ा थोड़ा लूट पाट कर
कितना माल बनाएगा।
अहंकार के महल में 
कब तक दीप जलाएगा!
सब है तेरा कहता है तू
कब तक यह कह पायेगा।
आज तेरा जो भी है बन्दे
कल किसी और का हो जाएगा।
क्या सोना है क्या चाँदी है
सब धरा रह जायेगा।
रिश्ते नाते झूठे बन्दे
एक दिन आँख दिखाएंगे।
अभी समझ न पाया गर तु
फिर कभी समझ न पायेगा।
खाली हाथ तू आया बन्दे
खाली हाथ ही जायेगा।
मिट्टी से बना है जीवन
सब मिट्टी में मिल जाएगा।
सादा जीवन उच्च विचार
तुझे अमर कर जाएगा।
@tri..

रविवार, 22 नवंबर 2020

क्या लिखूं .. सोच रहा हु

 

दिल के जज्बात लिखूं
या मन की व्यथा..
अधूरे अल्फ़ाज़ लिखूं
या पूरी कविता..
क्या लिखूं यह सोच रहा हूं
शब्दो की भीड में 
कही भावनाये दब न जाए
डर से सिमटे अल्फ़ाज़ 
कही खो न जाए..
दुख की बात लिखू
या सुख के गीत
क्या लिखूं यह सोच रहा हूं
सत्य का अहसास लिखू
या झूठ का बाजार
मातृभूमि की पीड़ा लिखू
या इंसान की इंसानियत
क्या लिखूं यह सोच रहा हु
आने वाले कल पर लिखू
या बीते पल पे लिखू
आंखों की भाषा लिखू
या शब्दो की परिभाषा
क्या लिखूं यह सोच रहा हु
लब से निकलते बोल लिखू
या दिल के एहसास
मन के अंधेरे कोने में
बस उजियारा आ जाए
ऐसा कुछ लिखू सोच रहा हु।
@tri..

शनिवार, 14 नवंबर 2020

कुछ न होकर भी खुश रहने का अंदाज़

 

घर से कुछ दूर सड़क के किनारे
बाजार की भीड़ में 
मिठाई के दुकान के पास
सिक्के गिनते हुए मैंने उसे देखा,
उसकी आँखों मे दीवाली के उत्साह को 
मैंने सिक्को की खनक में जीते हुए देखा,
चाहत उसकी भी रंग बिरंगे कपड़ो की 
पर अपनी फटे पुराने कपड़ो को
साफ करते हुए मैंने उसे देखा,
मासूम सी आंखों की नमी को
चेहरे की मुस्कुराहट के पीछे
छुपाते हुए मैंने उसे देखा,
बाजार की भीड़ में लड़के को अकेले 
खामोश एक कोने में खड़े
खुद के ग़मो को पीते हुए मैंने देखा,
जब मैं उसके नजदीक गया
और पूछा,"बेटा क्या चाहिए तुम्हे?
हल्की सी मुस्कुराहट के साथ
सिर हिलाकर 'ना' करते हुए मैंने उसे देखा,
कमाल की गरीबी 
और गजब का स्वाभिमान 
उस बच्चे में मैंने देखा,
इतनी छोटी सी उम्र में 
उसके अंदर 'ज़मीर' को पलते हुए मैंने देखा,
कुछ न होकर भी खुश रहने का अंदाज़
उस बच्चे की मुस्कुराती आंखों में मैंने देखा।
   @tri....      

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

उम्मीदो की दीवाली


मिट्टी के दीये बनाने वाला 
आशा के दीये बनाता है,
कई सपने और उम्मीदो को
मिठ्ठी के दीये में सजाता है,
भरी दोपहरिया उम्मीदो संग
फटे पुराने कपड़े में ही
दीये बेचने निकल जाता है,
"दीये ले लो"
"मिट्टी के दीये ले लो"
बड़े प्यार से लोगो को बुलाता है,
ऐसे ही कई उम्मीदे 
कभी चौराहे ,कभी बाज़ारो में 
कभी चौखट पर दिख जाते है,
जरूरतों को पूरी करने के चक्कर में
खुद की दीवाली भूल जाते है,   
तो क्यो न इस बार की दीवाली
कुछ अलग अंदाज़ में मनाई जाए,
जहाँ तक हो सके दीये की रोशनी
उन तक पहुचाई जाए ,
जिनकी मेहनत से 
हमारे छोटे छोटे सपने पूरे होते है ,
जिनके आशीर्वाद से 
हर घर रोशन होते है,
क्यो न इन नन्हे उम्मीदो को 
हौसलो की उड़ान दी जाए,
इस दीवाली इनके ओठो पर 
थोड़ी ही सही मुस्कान दी जाए।
@tri....

शनिवार, 7 नवंबर 2020

काश तेरे जैसी ही दुनिया होती..

 

जितनी प्यारी तुम्हारी आंखे है 
काश उतनी ही प्यारी दुनिया होती।
आसमान जितने सपने होते 
उम्मीदों से ऊंची उड़ान होती ।
न गिरने का भय होता 
न उड़ने की चिंता ।
प्यारी सी दुनिया मे 
प्यारे प्यारे लोग होते।
तुम्हारी तरह मुस्कुराते 
तुम्हारी तरह ही बाते करते ।
बातो से घाव भर जाता 
दर्द में भी दिल मुस्कुराता।
पर सपनो की दुनिया की
हकीकत कुछ और है ।
सच की कीमत कम है
झूट का ही शोर है।
उम्मीदे मंदी में है 
सपनो का भाव कमजोर है।
काँटो से सजी है दुनिया
पर ऊची उड़ान का जोर है।
हर कोई हर किसी की टांग खीचता
मतलब के बादल घनघोर है।
सच और झूठ के चश्मे पहने
लोग कितने अनमोल है।
@tri....

सोमवार, 2 नवंबर 2020

ज़िन्दगी की दोहरी चाल..

 

ज़िन्दगी अक्सर दोहरी चाल चलती है
नाम भी देती है, बदनाम भी करती है
प्रसंशा भी देती है,निंदा भी करती है
सम्मान भी देती है ,अपमान भी करती है
ज़िन्दगी के इस दोहरी चाल में इंसान बुरा फसता है
ज्यादा पाने की लालच में खुद को खो बैठता है
अपने पैसे और ताकत पर घमंड करता है
उसी घमंड से ' मैं 'का जन्म होता है
'मैं ' से अहंकार की उत्पत्ति होती है
अहंकार आदमी को सत्य से दूर कर देता है
असत्य धीरे धीरे अपनो को दूर कर देता है
रिश्ते काँच के टुकड़ो की भांति बिखर जाते है
अंत मे पैसे और ताकत बस नाम के रह जाते है 
जिस्म मिट्टी की मिट्टी में मिल जाती है
कर्म अच्छा हो तो नाम कर जाती है 
कर्म बुरे हो तो बदनाम हो जाती है 
ज़िन्दगी है यारो जीना सीखा जाती है
कभी गीता कभी कुरान बन जाती है 
इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ाती है।
फिर भी इंसान ज़िंदगी को समझ नही पाता है
ज़िंदगी के दोहरी चाल में अक्सर फस जाता है।
@tri....