शनिवार, 24 अप्रैल 2021

अब कुछ नज़र नही आता..

 

फितरत है झूठी प्रशासन की
कोई सूरत अब नज़र नही आती।
सच्चाई से रूबरू हो रही जनता
अब कोई मूरत नज़र नही आती।
तांडव है मौत का जल रही है चिताए शमशान में
बचने की कोई सीरत नज़र नही आती।
मातम का माहौल और डर है कोने कोने में
अब तो निकलने की कोई तरकीब
नज़र नही आती।
इंसान कैद है घरों में लग गए मंदिर में ताले
हालात इतनी बुरी की भगवान नज़र नही आते।
हाल बुरा है सबका अये हाले दिल-अये हाले वतन
अब तो भाग्य की लकीर भी नज़र नही आती।
भेड़ियों की खाल पहने कहा छुप गए वो भेड़
अब तो वो भाड़े की भीड़ भी नज़र नही आती।
कहाँ गए वो लोग जो दे रहे थे भीख ज़िन्दगी की
करते थे बाते विकास और सुरक्षा की,
कहाँ गए वो देवता जो दे रहे थे
सीख आत्मनिर्भरता की,
अब तो हालात ऐसी है कि
रक्षा की बात करने वाले रक्षक भी नज़र नही आते।
सब खेल है राजनीति का हमने यह बात जाना
शायद Population control करना होगा
यही हकीकत माना।
विनती है जनता से खुद की सुरक्षा खुद करे
मास्क पहने ठीक से और सेनेटाइजर use करे।
अब न संभले यारो तो कभी संभल न पाओगे
प्रशासन के भरोसे बैठे तो शमशान में
नज़र आओगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें