शुक्रवार, 26 जून 2020

पल पल सिमटती ज़िन्दगी (कविता)


पल पल सिमटती ज़िन्दगी। 


पल पल सिमटती जा रही है ज़िन्दगी
हर तरफ खौफ का माहौल है
हर तरफ अफरातफरी
किसी को कल का नही पता
आज की चिंता में सब परेसान है
आज आदमी आदमी से हैरान है
कैसे खुद को बचाये इस बात से अनजान है
ज़िन्दगी का क्या खेल है
मौत के सामने आज इंसान फैल है
समय का पहिया आज विज्ञान से तेज है
हालात ऐसे है जिसका हमे आभास नही
आने वाले पल का कोई हिसाब नही
परिस्थितियां बदलेंगी वक़्त बदलेगा
इंसान हो इंसानियत को न बदलो
कब तक युही उदास बैठोगे
ज़िन्दगी का अंत है तो अंत ही सही
हिसाब किताब से आगे निकल के
सिमटती ज़िन्दगी के खेल को खेलो तो सही
कल हार होगा या जीत ये भूल के
दिल के दरवाजे खोलो तो सही
मुस्कुरा दो थोड़ा
मुस्कुरा के कुछ बोलो तो सही।
@tri....

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