सुबह उठते ही
मेरी आँखें ढूढ़ती है तुम्हे
देखने की ज़िद करती है
करीब तो हो ही
और करीब होने की
ज़िद करती है
सूरज की रोशनी
जब मेरे चेहरे पर पड़ती है
मेरी आँखें छूती है
तुम्हे पाने की ज़िद करती है
जब चाय की चुस्की लेता हूं
चाय के कप से बाहर निकलती
अंगड़ाई लेती हुई
भाप में मुस्कुराती
मेरी आँखें तुम्हारी तस्वीर बुनती है
तुम्हे देखने की ज़िद करती है।
✍️tri..
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जवाब देंहटाएंVery beautiful poem 👌🏻
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