शनिवार, 18 जुलाई 2020

बचपन मिठ्ठी के गुलक सी (Poem)




बचपन मिट्टी के गुलक सी है
कभी अकड़ है तो कभी बकड है
इसमें छोटी छोटी खुशिया है
और रंग बिरंगे सपने भी है
जहाँ रोने की वजय है 
वही हँसने का बहाना भी है
बचपन कागज़ की कश्ती सी है
न उभरने की चिंता है 
न ही डूबने का कोई गम है
न कुछ पाने की आशा है 
न ही कुछ खोने का डर है
बचपन पतंग की उड़ान सी है
जहाँ बस अपनी धुन है 
और अपना खुद का आसमान है
न गिरने का डर है 
न चोट का कोई भय है
बचपन ना समझ है पर सच्ची सी है
बचपन कैसा भी हो 
अब की ज़िंदगी से अच्छी है।
@tri....


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